Gracious Holi

!! अद्वैत होली !!

 {वेदान्त के आचार्य – श्री परमहंस भोले बाबा जी द्वारा विरचित }

 

होली जली तो क्या जली पापिन अविद्या नहीं जली।

आशा जली नहीं राक्षसी, तृष्णा पिशाची नहीं जली।।

 

झुलसा न मुख आसक्ति का, नहीं भस्म ईर्ष्या की हुई।

ममता न झोंकी अग्नि में, नहीं वासना फूँकी गई।।

 

न ही धूल डाली दम्भ पर, न ही दर्प में जूते दीये।

दुर्गति न की अभिमान की, न ही क्रोध में घूँसे पीये।।

 

अज्ञान को ” खर ” {गदहा } पर चढ़ा करमुख नहीं काला किया।

ताली न पीटी काम की, तो खेल होली क्या लिया।।

 

छाती मिलाते शत्रु से, सन्मित्र से मुख मोड़ते।

हितकारी ईश्वर छोड़ कर, नाता जगत से जोड़ते।।

 

होली भली है देश की अच्छी नहीं परदेस की।

सुनते हुए बहरे हुए, नहीं याद करते देश की।।

 

माजून खाई भंग की, बौछार कीन्हीं रंग की।

बाजार में जूता उछाला, या किसी से जंग की।।

 

गाना सुना या नाच देखा, ध्वनि सुनी मौचंग की।

सुध बुध भुलाई आपनी, बलिहारी ऐसे रंग की।।

 

होली अगर हो खेलनी, तो संत सम्मत खेलिये।

सन्तान शुभ ऋषि मुनिन की, मत संत आज्ञा पेलिये।।

 

सच को ग्रहण कर लीजिए, जो झूठ हो तज दीजिये।

सच झूठ के निर्णय बिना, नहीं काम कोई कीजिये।।

 

होली हुई तभ जानिये, संसार जलती आग हो।

सारे विषय फीके लगें, नहीं लेश उनमें राग हो।।

 

हो शांति कैसे प्राप्त निश दिन, एक यह ही ध्यान हो।

संसार दुःख कैसे मिटे, किस भाँति से कल्याण हो।।

 

होली हुई तब जानिये, पिचकारी सदगुरु की लगे।

सब रंग कच्चे जांय उड़, यक रंग पक्के में रंगे।।

 

नहीं रंग चढ़े फिर द्वैत का अद्वैत में रंग जाय मन।

है सेर जो चालीस सो ही जानियेगा एक मन।।

 

होली हुई तब जानिये, श्रुति वाक्य जल में स्नान हो।

विक्षेप मल सब जाय धुल, निश्चिन्त मन अम्लान हो।।

 

शोकाग्नि बुझ निर्मल हो, मति स्वस्थ निर्मल शांत हो।

शीतल हृदय आनन्दमय, तिहूँ पाप का पूर्णान्त हो।।

 

होली हुई तब जानिये, सब दृश्य जल कर छार हो।

अज्ञान की भस्मी उड़े, विज्ञानमय संसार हो।।

 

मांहि हो लवलीन सब, है अर्थ होली का यही।

बाकी बचे सो तत्त्व अपना, आप सबका है वही।।

 

भोला ! भली होली भयी, भ्रम भेद कूड़ा बह गया।

नहीं तू रहा नहीं मैं रहा, था आप सो ही रह गया।।

 

अद्वैत होली चित्त देकर, नित्य जो नर गायेगा।

निश्चय अमर हो जायेगा, नहीं गर्भ में फिर आयेगा।।

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