ज्ञानाग्नि का प्रकाश: मोह, मद और संतोष का जाल

 

“प्रज्वलित ज्ञानाग्नि को हमेशा चित्त में जलाना ही तप है।” यह वाक्य ज्ञान और तप के महत्व पर प्रकाश डालता है। ज्ञान अंधकार को दूर करता है और हमें सत्य की ओर ले जाता है। तप हमें आत्म-नियंत्रण और अनुशासन सिखाता है, जो ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं।

मोह का जाल:

मोह एक ऐसा भाव है जो हमें आणवों से बांधकर रखता है। यह भौतिक सुखों और इच्छाओं की आसक्ति है। मोह हमें अंधा बना देता है और हमें गलत रास्ते पर ले जाता है। जब हम मोह में डूब जाते हैं, तो हम अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को भूल जाते हैं।

जबरदस्ती का नशा:

मद का अर्थ है नशा। यह अभिमान का नशा है, जो हमें अंधा बना देता है। जब हम मद में डूब जाते हैं, तो हम यह सोचने लगते हैं कि हम सर्वश्रेष्ठ हैं और कोई भी हमसे बेहतर नहीं है। यह अहंकार हमें दूसरों को नीचा दिखाने और गलत काम करने के लिए प्रेरित करता है।

मद और संतोष का अंतर:

मद और संतोष दो अलग-अलग चीजें हैं। संतोष का अर्थ है जो हमारे पास है उसमें खुश रहना। जब हम संतुष्ट होते हैं, तो हम लालची और ईर्ष्यालु नहीं होते। हम दूसरों की सफलता से खुशी महसूस करते हैं और अपनी असफलताओं से सीखते हैं।

मद, दूसरी ओर, का अर्थ है यह सोचना कि हमारे पास जो कुछ भी है वह सबसे अच्छा है। जब हम मद में डूब जाते हैं, तो हम दूसरों की उपलब्धियों को कम आंकते हैं और खुद को उनसे बेहतर समझते हैं। यह हमें अहंकारी और असहिष्णु बना देता है।

इंद्रियों का अभिमान:

इंद्रियां भी अभिमान से ग्रस्त हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति दूसरों की बातों को अच्छी तरह से नहीं सुन पाता है, तो वह यह कह सकता है कि सामने वाला व्यक्ति धीरे बोल रहा है। यह इंद्रियों का अभिमान है, जो हमें अंधा बना देता है और हमें अपनी कमियों को स्वीकार करने से रोकता है।

निष्कर्ष:

ज्ञान, तप, संतोष और विनम्रता जीवन में सफलता और खुशी के लिए आवश्यक हैं। हमें मोह, मद और इंद्रियों के अभिमान से दूर रहना चाहिए। हमें ज्ञानाग्नि को हमेशा अपने चित्त में प्रज्वलित रखना चाहिए और सत्य की राह पर चलना चाहिए।

धन्यवाद!

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