वक्त का खेल
कुछ लोग थे, जो वक्त के सांचों में ढलकर रह गये,
जैसे मिट्टी के बर्तन, वो धीरे-धीरे घिस गए।
नए विचारों से वो दूर रहे, बदलावों से डरते रहे,
जैसे पुराने ताले, वो धीरे-धीरे जंग खा गए।
पर कुछ लोग थे, जो वक्त का सांचा बदलकर रख गये,
जैसे नदियां बहती, वो हर पल आगे बढ़ते रहे।
नए विचारों को अपनाया, बदलावों का स्वागत किया,
जैसे सूरज की किरणें, वो धीरे-धीरे चमकते रहे।
वक्त का खेल है यारों, कभी हार है कभी जीत,
जो ढल जाते हैं सांचों में, वो हार जाते हैं ज़िंदगी की रीत।
पर जो बदलते हैं खुद को, वो जीत जाते हैं हर मोड़,
क्योंकि वक्त का सांचा बदलकर, वो खुद लिखते हैं अपनी किस्मत का जोड़।
कौन सा रास्ता चुनना है, यह आप पर निर्भर करता है।
क्या आप वक्त के सांचों में ढलकर रहना चाहते हैं, या वक्त का सांचा बदलकर रखना चाहते हैं?
यह जीवन आपका है, इसे जी भरकर जिएं।
सपने देखें, लक्ष्य बनाएं, और उन्हें हासिल करने के लिए कठोर परिश्रम करें।
हार न मानें, चुनौतियों का सामना करें, और धीरे-धीरे वक्त का सांचा बदलकर रख दें।
शुभकामनाएं!