शिवरात्रि का संदेश

व्यवहार में बनावटीपन छोड़, छल-कपट का त्याग करो, सरल सीधे बनो, करूणामय बनो, शरीर को साधनाधाम बनाओ। बालक रूप धारण कर सहज बनो। विश्वासी हो, तभी शिव को पा सकोगे, शिवमय हो सकोगे।

ओम नमः शिवायय भवोमवायच नमः
शंकरायच मदस्करायच शिवायच शिवरायच।

अघोर भैरव, सद्योजात, कामदेव, तत्पुरूष और ईशान, सभी शिव के भावरूप है और पंच परमेश्वर बनाते है।

त्रिमूर्ति – तीन उपरोक्त भाव है जिसके साथ अन्र्तदृष्टि निहित होती है, और तीसरी दृष्टि के रूप में, मानव कल्याण के लिये ही खुलती है।

शिव – चन्द्रमोली, कलाधर एवं चन्द्रचूड है जिन्हांेने संसार का जहर पी, अमृत पाई है सोम तत्व से जीवन सार्थक किया है।

  • कैलाशनाथ – कैलाश में निवासकर्ता
  • काशीनाथ याने महाश्मशानवासी जो सभी का उद्धार करते है।
  • भोलानाथ – भोले है। नंग धडंग दिगम्बर है, तो भाव-विभव के स्वामी परमेश्वर है।
  • भोलेनाथ को पाने के लिये भोला होना पड़ेगा और सहजता रख उसे पाया जा सकता है।

भगवान शिव के अनेक नाम है। सभी नामों से उनका रूप, विचार, भक्तों के प्रति सहज भाव सांसारिक वैश्विकता के प्रति रूद्रता और सृष्टि के प्रहरी और अहंकार को नष्ट करने वाले ब्रह्म साध्य बने।

रूद्र, सृष्टि के मनोवेग रूप है। ब्रह्माण के अहेरी हैं। पशुपति, जो पशु रूप को साध्य कर मनुष्य की दुश्प्रवृत्ति को रोकता है। पशुपति दुष्ट भावों को नाश कर शान्ति प्रदान करता है।

भूतनाथ – भूत या भय को भगाने वाला भूतनाथ होता है। जीवन की अतृप्त आकांक्षायें, अपूर्ण वासनाएं एवं कुुप्रवृत्ति को दूर करने वाला भूतनाथ ही है।

कृपालु – कृपा करने वाला। अवधूत जो दूसरों के लिये अपना छोड़, भक्तों को सुख देता है।

अर्द्धनारीश्वर – भूतनाथ पार्वती के तप से वशीभूत होकर पार्वती को अंगीकार कर आधा शरीर ही दे दिया और अर्द्धनारीश्वर हो गये। शिव और पार्वती का सामंजस्य ही शिवरसता है।

शिव शम्भू – राम कल्याण है और शिव शम्भू मंगलकारी है।

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शिव और शक्ति का शाश्वत संयोग
अनन्त, अगम, अगोचर, अविनाशी – शिव भोलेनाथ एक तांत्रिक के लिये श्मशान देवता

संसार के देवता

जीवन के प्रहरी

सदाशिव, भूतनाथ, आशुतोष, नीलकंठ है।
शिव के दस व्रत है। महाशिवरात्रि सर्वाधिक पूज्य व बलवान है। शिव के साथ कोई भी समय मंगल व अमंगल नहीं होता क्योंकि वही अमंगल के नियंत्रक है।
व्रत – धर्म का उत्तम साधन है। व्रत एक तप है जहाँ व्यक्ति अपने आपको हर तरह से संयमित करता है। इसमें दया, आक्रोश, क्षमा, विद्या, शील, शुद्धि, सत्य, संयम व अध्ययन समाहित है।

शक्ति – शिव की सहधर्मिणी है
शिव ने जैसा रूप धारण किया शक्ति ने भी वही रूप धारण किया और शक्ति कई नामों से जाने लगी – रूद्राषी, शर्वाणी, भवानी, कात्याथिनी, काली, गौरी, हेमवती, शिवा, उमा, सर्वमंगला।
शिव – आदिगुरू। डमरू से नाद की उत्पत्ति हुई जिससे सारी विधाए आईं।
त्रिशूल – तीन तत्वों का नाश करता है – (1) दैहिक (2) दैविक (3) भौतिक।
नंदी (वाहन शिव के) – चार पैर, चार पुरूषाधे – धर्मा, अर्ध, काम और मोक्ष शिव का रूप – कपूर जैसा सफेद जो सूर्य की सभी प्रकाश रश्मियों को वापस कर देता है और थोड़े समय में उड जाता है जैसा जीवन भी क्षणिक होता है।
शिव विभूति (भस्म) – चिता की भस्म और ऐश्वर्य – धन सम्पत्ति।
गले में मुंडमाल – जीवन की अति व्यस्तता को बताता है।
सर्प – मृत्यु पर विजय की घोषणा करती है।
मस्तक पर अर्द्धचंद्र – आत्मा की शाश्वतता बताता है।
छाल का बिछोना – तमोगुण पर सत्वगुण की विजय है।
अर्द्ध नारीश्वर – आधा भाग शिव और आधा शक्ति (पार्वती)। शक्ति के अभाव में शिव का अस्तित्व ही नहीं है। शिव स्त्री पुरूष में समान भागीदारी।
संसार हर विपरीत परिस्थितियों में सामंजस्य बढ़ता है।

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